सभा का गठन
सभा का गठन 1802 ई० में उपस्थित सभी तीर्थ पुरोहित ने किया उस समय इसका नाम धर्मरक्षा सभा रखा गया था, उसके बाद 1865 ई0 में इस सभा को व्यापक बनाया गया और प्रत्येक तीर्थ पुरोहित परिवार से एक सदस्य समिति में सदस्य के रूप में रखा गया, मंदिर में यात्रियों की सुरक्षा सुव्यवस्था और अपनी आचार्य वृति की रक्षा एंव सामाजिक विकास के लिए इसको व्यवस्थित किया गया ।
कालांतर में यह प्रक्रिया चलती रही और 1960 में स्वः पं० शिवराम झा जी द्वारा इस संस्था को व्यापक उद्येश्य बनाने हेतू लिखित संविधान आम सभा के द्वारा स्वीकृत किया और उसी के आधार पर सभा आगे चलती रही तदउपरांत 1995-96 में सोसाइटी रजि0 एक्ट की धारा 21 / 1860 के तहत पंजिकृत कराया गया और आजतक यह संस्था चल रही हैं।
उद्येश्यः- सभा का मूल उद्येश्य यात्रियों की सुव्यवस्था, सुरक्षा एंव मदद करने के उद्येश्य के साथ सामाजिक शैक्षणिक,सांस्कृतिक विकास के लिए हर समय तत्पर रहती हैं। जो भी यात्रियों का पॉकेटमारी या सामान चोरी हो जाता है तो उसको गंत्वय स्थान तक पहुँचाने का दावित्य सभा निभाती है। जितने साधु संत गरीब विधवा विकलांग आते है सबको भोजन आवास की व्यवस्था सभा करते आ रही हैं।
वर्तमान में सभा शिक्षा के क्षेत्र में संस्कृत भाशा का विकास के लिए स्कूल चलाती है साथ में गरीब निर्धन छात्रों के लिए रात्री ट्यूशन मुफ्त में देती है ।
कम्पयूटर की शिक्षा, कढाही - बुनायी की शिक्षा ( महिला विकास) पुस्तकालय में पठन पाठन के साथ गरीब मेधावी छात्र को तकनिकी ज्ञान के लिए मदद करती हैं।
भविश्य की योजना:- सभा एक विशाल प्रशाल बनाने की योजना बनायी है जिसमें श्रावण या अन्य मेले में जितने भी भूले-भटके लोग इधर उधर घूमते है, उनको एक जगह एकत्रित करके , उनके सम्बधि से मिलाने की सुव्यवस्था करने के लिए जमीन प्राप्त करने के लिए प्रयासरत हैं। इसके अत्तिरिक्त उसी प्रशाल के उपर में धर्मशाला निर्माण कराया जाएगा जिसमें गरीब, निर्धन, आदिवासी, हरिजन आदि लोगो के लिए मुफ्त भोजन आवास की व्यवस्था करायी जाएगी । इसके साथ एक वृद्धा आश्रम जिसमें देवघर या अन्य जगह से अपने सुयोग्य पुत्रो या पुत्रवधओ द्वारा प्रताडित वृद्ध और वृद्धा को आवास भोजन स्वास्थ्य की मुफ्त व्यवस्था करने की योजना हैं ।
साथ ही स्वास्थ्य सेवा में देवघर या देवघर से बाहर जिसभी व्यक्ति को ऐम्बूलेंस बिना मुनाफे का और ऑक्सीजन सिलिंडर मुफ्त में मुहैया देवघरवासी को कराती है । भविश्य में एक ऐम्बूलेंस और एक भाव वाहन एंव पाँच ऑक्सीजन सिलिंडर सभा को उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा हैं।
पंडा धर्म रक्षिणी सभा का इतिहास
The Jyotirlinga: A Lighthouse of Shiva's
One of the twelve Jyotirlingas, Baba Baidyanath is exceptional. Swayambhu, a self-manifested Jyotirlinga, has been worshipped since prehistory. A dimly lit sanctuary houses the famous Jyotirlinga in the temple complex. People travel far to pray for blessings and spiritual enlightenment. The Jyotirlinga's therapeutic powers make Lord Shiva "Baidyanath," or "the Lord of Physicians."
The Shakti Peetha: An Icon of Sacred Strength
The Shakti Peetha at Baba Baidyanath Dham is related to Sati, Lord Shiva's wife. Shiva moved her self-immolated body around the country in grief. Shakti Peethas appeared everywhere her body fell. The Hriday Peeth, or Heart Shrine, in Deoghar is where Sati's heart apparently dropped. This Shakti Peetha features Jaya Durga, Parvati's manifestation.
Shravani Mela: An Exuberant Festival of Belief
The most important celebration in Baba Baidyanath Dham is the Shravani Mela, which takes place in the Hindu month of Shravan. At the temple, thousands of pilgrims congregate, fostering a lively and spiritual environment. This is the height of the Kanwar Yatra, a pilgrimage involving the kanwar that turns the town into a sea of devotion.